BA Semester-5 Paper-2 Sanskrit - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :224
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2802
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 संस्कृत व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।

उत्तर -

१. अश्वा

यहाँ अश्व शब्द स्त्रीत्व की विवक्षा में अजाद्यतष्टाप् सूत्र से टाप् प्रत्यय हो 'अश्व' आ रूप बनता है। पुनः अकः सवर्णेदीर्घः से दीर्घादेश होकर अश्वा रूप सिद्ध होता है।

२. एनी

यहाँ अनुदात्तान्त तो पध अनुपसर्जन एत शब्द से वर्णादनुदात्तात् तोपधात् तो नः से विकल्प से ङीप् प्रत्यय और तकार का नकार आदेश अनुबन्ध लोपः 'यस्येति च' से अनूत्य 'अ' का लोप, स्वादिकार्य होकर एनी रूप बनता है।

३. दीव्यन्ति

यहाँ शतृप्रत्ययान्त 'दीव्यत्' शब्द से भी 'उगितश्च' सूत्र से ङीप् (ई) प्रत्यय करके 'भवती' रूप बनता है। पुन: 'शाश्यनो: नित्यम्' से नुम् (न्) आगम होकर दीव्यन्ति रूप बनता है।

४. कुरुचरी। नदी। दंवी। सौपर्णेयी। ऐन्द्री। औरसी। अरुद्वयसी। अरुदघ्नी। अरुमात्री।

यहाँ चर' धातु से 'ट' प्रत्यय होकर बना 'कुरुचर' पद टिदन्त है। अतः टिड्ढाणञ - द्वयसज्- दघ्नञ्-मात्रय्-तयप्-ढक्-ढञ् क्ज् क्वरपः सूत्र से स्त्रीलिंग की विवक्षा में 'ङीप' प्रत्यय होकर 'कुरुचर ई' रूप बनता है। पुनः 'यस्येति च' से अन्त्य अकार का लोप होकर 'कुरुचरी' रूप सिद्ध होता है। इस प्रकार टिदन्त 'नद' और 'दैव' शब्द से ङीप् प्रत्यय होकर क्रमश: 'नदी' और देवी रूप बनते हैं।

५. स्त्रैणी। पौंस्नी। शाक्तीकी। याष्टीकी। आढ्यकरणी। तरुणी। तलुनी।

यहाँ नञ् स्नजीकक् ख्पुंस्तरुण-तलुनानामुपसंख्यानम्। वार्तिक से नञ् - प्रत्यान्त 'स्त्रैज' शब्द से स्त्रीलिंग की विवक्षा में ङीप् (ई) प्रत्यय होकर 'स्त्रैणी' रूप सिद्ध होता है। इसी प्रकार स्नज्-प्रत्ययान्त 'पौंस्न' से 'पौंस्नी' ईकक् - प्रत्ययान्त 'शाक्तीक' से 'शाक्तीकी' रूप बनते हैं।

६. पडू

पंडू में 'पङ्गोश्च सूत्र के द्वारा स्त्रीत्व बोधक 'ऊङ' प्रत्यय होता है।

७. 'तटी'

उपधा में यकार से रहित तथा स्त्रीलिंग में अनियत जातिवाचक तट् शब्द से 'जातेर- स्त्रीविषपादयोपधात्' सूत्र से स्त्रीत्व - बोधक 'ङीष्' प्रत्यय होता है।

८. गार्गी

यहाँ यञ् प्रत्ययान्त शब्द 'गार्ग्य से यञश्च' सूत्र से ङीप् (ई) प्रत्यय होकर 'गार्गी' ई रूप बनता है। पुनः 'यस्येति च' से अन्त्य अकार तथा 'हतस्तद्धित' सूत्र से उपधाभूत यकार का लोप होकर गार्गी रूप सिद्ध होता है।

९. नारी

'नृ' शब्द से 'नृनरयोर्वृद्धिश्च' इस नियम के अनुसार स्त्रीलिंग में ङीन् प्रत्यय होता है। 'ङीन्' में 'ई' शेष रहता है।

१०. कुमारी

वाचक कुमार शब्द से स्त्रीलिंग में नयपि प्रथमे 'सूत्र से ङीप् प्रत्यय होता है।

११. नर्तकी

यहाँ 'नर्तक' में 'षिद्गौरादिभ्यश्च' षित् प्रत्यय होकर नर्तक + ई रूप बनता है।

१२. अनड्वाही, अनडुही।

यहाँ 'अनडुह' शब्द से 'षिद् गौरादिभ्यश्च' सूत्र से ङीष् (ई) प्रत्यय होकर 'अनुडुरु ई रूप बनता है। पुनः आमनडुहः स्त्रियां वा। वार्तिक से आम् (आ) का अण्क होकर तथा 'इकोयणाची' से यव्यादेश होकर 'अनड्वाही' रूप सिद्ध होता है। 'आम्' के अभाव पक्ष में 'अनडुही' रूप बनता है।

१३. त्रिलोकी

यहाँ 'त्रिलोक' पद में द्विगु समास हुआ है अत: 'द्विगो:' सूत्र से स्त्रीलिंग की विवक्षा में ङीष (ई) प्रत्यय होकर त्रिलोक ई रूप बनता है। पुनः 'यस्येति च' से अन्त्य अकार का लोप होकर 'त्रिलोकी' रूप सिद्ध होता है।

१४. मृद्वी, मृदु।

यहां उकारान्त गुणवाची 'मृदु' शब्द से 'वोतोगुणवचनात् ' सूत्र से ङीष् प्रत्यय होकर 'मृदु ई ' रूप बनता है। पुनः इकोयणचि' से डकार को वकार होकर 'मृद्धी' रूप सिद्ध होता है। 'ङीष् प्रत्यय के अभाव पक्ष में 'मृदु:' रूप बनता है।

१५. बस्बी, बहुः।

यहाँ 'बहु' शब्द से 'बहवादिभ्यश्च' सूत्र से स्त्रीलिंग की विवक्षा में ङीष् (ई) प्रत्यय होकर बहु ई' रूप बनता है। पुनः 'इको यणचि' से उकार को वकार होकर 'बहवी' रूप सिद्ध होता है। 'डीष्’' प्रत्यय के अभाव - पक्ष में 'बहु:' रूप बनता है।

१६. गोपी

यहाँ पुरुषवाचक ‘गोप' शब्द से 'पुंयोगादाख्यायाम्' सूत्र से स्त्रीलिंग की विवक्षा में ङीष् (ई) प्रत्यय होकर गोप ई रूप बनता है। पुनः पाचेति च से अन्त्य अकार का लोप होकर 'गोपी' रूप सिद्ध होता है।

१७. गोपालिक। अश्वपालिका

यहाँ 'गोपालका' पद में 'कन्' प्रत्यय हुआ है। यहाँ कमार से पूर्व अकार भी है। अतः टाप् (आ) प्रत्यय परे होने के कारण प्रत्ययस्थात् कात् पूर्वस्यात इदात्यसुपः सूत्र से अकार होकर 'गोपालिका' रूप सिद्ध होता है। इसी प्रकार 'अश्वपालक' से अश्वपालिका' रूप बनता है।

१८. सूर्या

यहाँ 'सूर्यस्य स्त्री देवता' इस विग्रह में सूर्याद देवतायां चाव्वाच्यः वार्तिक से सूर्य शब्द से 'चाप्' (आ) होकर 'सूर्य आ' रूप बनता है। पुनः अकः सवर्णे दीर्पा:' से दीर्घादेश होकर 'सूर्या' रूप सिद्ध होता है।

१९. इन्द्राणी। वरुणानी। भवानी।

यहाँ 'इन्द्राय स्त्री' इस विग्रह में 'इन्द्र' शब्द से इन्द्रवरुणभवशर्व०' से ङीष् (ई) प्रत्यय होकर 'इन्द्र ई' रूप बनने पर पुनः इन्द्र को असुक (आन्) होकर 'इन्द्र आनी' रूप बनता है। तदनन्तर सवर्ण दीर्घ और णत्व होकर 'इन्द्राणी' रूप सिद्ध होता है। इसी प्रकार 'वरुण' से वरुणानी तभा भव से 'भवानी' रूप बनते हैं।

२०. चन्द्रमुखी।

चन्द्रमुखी (चन्द्र के समान है मुख जिसका) चन्द्र इव मुखं यस्यः सा 'इस' विग्रह में बहुव्रीहि समास होकर 'चन्द्रमुख' शब्द बना। इस प्रकार 'चन्द्रमुख' शब्द से 'स्वाङ्गाच्चोपसर्जनादसंयोगोपधात्' सूत्र के विकल्प से चन्द्रमुखी में ङीष् प्रत्यय होता हैं।

२१. गोपी

गोपी में 'ङीष् प्रत्यय (पुंयोगादाश्यायाम्) में होता है।

२२. राष्ट्रीय

राष्ट्रे जात: अथवा राष्ट्रभव: (राष्ट्र में उत्पन्न या होने वाला) इस अर्थ में 'राष्ट्र' शब्द से राष्ट्राऽवाद पाराह धरणौ सूत्र से ध प्रत्यय होता है

२३. हिमानी

यहाँ 'महद् हिमम्' इस अर्थ में 'हिम्' शब्द से हिमाख्य योर्महत्वे वार्तिक से 'ङीष्' (ई) प्रत्यय और आनुक् (आन्) का आगम होकर 'हिमानी' रूप सिद्ध होता है। इस प्रकार अरण्य शब्द से अरण्यानी रूप बनता है

२४. यवनानी

यहाँ ‘यवनानां लिपि:' इस अर्थ में 'यवन' शब्द से ' यवनाल्लित्याम्' वार्तिक से डीष् (ई) प्रत्यय और आनुक् (आन्) आगम होकर ' यवनानी' रूप बनता है।

२५. मातुलानी। मातुली। उपाध्यायानी। उपाध्यायी।

यहाँ 'मातुलस्य स्त्री' इस विग्रह में 'मातुल' शब्द से मातुलोपाध्यायसोरानुखा वार्तिक से ङीष् (ई) प्रत्यय और विकल्प से आनुक (आन्) आगम होकर 'मातुलानी' रूप सिद्ध होता है। आनुक आगम के अभाव में केवल ङीष् (ई) प्रत्यय होकर मातुली रूप बनता है।

२६. दाक्षायणः

'दक्षस्य युवापत्यम्' - युवा पत्य अर्थ में 'गोत्रद्न्यस्त्रियाम्' के नियम के अनुसार गोत्र प्रत्ययान्त से ही प्रत्यय होगा। अतः दक्ष शब्द से 'अतइज् ' सूत्र से इज् प्रत्यय होता है।

२७. गोपा

'गोप' शब्दा. 'अजाद्यतष्टाप्' सूत्र टाप् (आ) प्रत्ययः।

२८. आचार्यानी

यहाँ 'आचार्यस्य स्त्री' इस अर्थ में 'आचार्य' शब्द से 'आचार्यादणत्वं च' वार्तिक से 'ङीष' प्रत्यय और आनुक (आन्) आपगम होकर 'आचार्यानी रूप बनता हैं। पुनः 'अटकुरवाङनु मत्यवायेऽपि से णत्व प्राप्त होता है। जिसका प्रकृत वार्तिक से निषेध होकर आचार्यानी रूप सिद्ध होता है।

२९. अर्याणी। अर्या। क्षत्रियाणी। क्षत्रिया।

यहाँ 'अर्य' शब्द से स्वार्थ में 'अर्यक्षत्रियाभ्यां वा स्वार्थे' वार्तिक ङीष् (ई) प्रत्यय और आनुक् (भान्) आगम होकर 'अर्याणी' रूप बनता है। ङीष् प्रत्यय और 'आनुक' से अभाव पक्ष में 'अजाद्यतष्टाप्' से टाप् (आ) प्रत्यय होकर 'अर्या' रूप बनता है। इसी प्रकार क्षत्रिय 'शब्द से ङीष् (ई) प्रत्यय तथा आनुक् (आन्) होकर क्षत्रियाणी और इसके अभाव में 'क्षत्रिय' रूप बनते है।

३०. वस्त्रक्रीती

यहाँ 'वस्त्रेण क्रीत:' इस विग्रह से सम्पन्न वस्त्रक्रीत प्रातिपदिक है। अतः क्रीतात् करण पूर्वात् सूत्र से स्त्रीलिंग में ङीष् (ई) प्रत्यय होकर 'वस्त्रक्रीत ई' रूप बनता है। पुनः 'याचेति च' से अन्त्य अकार का लोप होकर 'वस्त्रकृीती रूप सिद्ध होता है।

३१. अतिकेशी, अतिकेशा। चन्द्रमुखी। चन्द्रमुख्य।

यहाँ अतिकेश में 'केश' शब्द स्वाङ्गवाची है यहां उपध्य के शकार में संयोग भी नहीं है। अतः स्वाङ्गाच्चोपसर्ज - ०' सूत्र से स्त्रीलिंग में ङीष् (ई) प्रत्यय होकर 'अतिकेश ई' रूप बनता है। पुनः 'यस्येति च' से अन्त्य अकार का लोप होकर 'अतिकेशी' रूप सिद्ध होता है। ङीष् प्रत्यय के अभाव में 'अजाद्यतष्टाप्' से टाप् (आ) प्रत्यय होकर अतिकेशा रूप बनता है। इसी प्रकार 'चन्द्रमुख' से ङीष् (ई), प्रत्यय होकर चन्द्रमुखी और उसके अभाव में टाप् (आ) प्रत्यय होकर चन्द्रमुख्य रूप बनते है।

३२. शूर्पणखा गौरमुखा।

यहां 'शूर्पनख' शब्द के अन्त में स्वाङ्गवाची 'नख' शब्द के कारण 'स्वाङ्गाच्चोपसर्जनाद्' से 'शूर्पनख' से ङीष् प्रत्यय प्राप्त होता है किन्तु नखमुखात् संज्ञायाम्, सूत्र से उसका निषेध हो जाता है। तब अजाद्यतष्टाप् से टाप् (आ) प्रत्यय होकर तथा 'पूर्वपदात् संज्ञायामगः' से नकार को णकार होकर 'शूर्पणखा' रूप सिद्ध होता है। इसी प्रकार 'गोरमुख शब्द से गौरमुख रूप सिद्ध होता है।

३३. तटी, वृषली, कर्ण।

यहाँ 'तट' शब्द जातिवाचक है तथा इसकी उपधा में पकार भी नहीं है। अतः 'जातेरस्त्री ० ' सूत्र से स्त्रीलिंग में 'ङीष्' प्रत्यय होकर 'तट ई' रूप बनता है। पुनः 'यस्येति च' से अन्त्य आकार का लोप होकर 'तटी' रूप सिद्ध होता है। इसी प्रकार शूद्र जातिवाचक 'वृषल' से 'वृषली' और शाखावाचक 'कठ' से कर्ण' रूप सिद्ध होता है।

३४. अस्मदीपः।

आवयोः अस्माकं का अयम् (हम दोनों का या हमारा) इस विग्रह में 'अस्मद्' शब्द से 'युष्मद०' से छ को ईय आदेश

३५. हयी। गवयी। मुकयी। मनुषी।

यहाँ 'हय'। 'गवय' और 'मुकय' से पोषधप्रतिषेधे० वार्तिक से क्रमशः 'हयी' 'गवयी' और 'मुकयी' रूप बनते हैं। इसी प्रकार 'मनुष्य' शब्द से 'ङीष्' (ई) प्रत्यय होकर 'मनुष्य ई' रूप बनने पर 'हलस्तद्धितस्य' से यकार का लोप होकर 'मनुषी' रूप सिद्ध होता है।

३६. नारी

यहाँ 'नृ' शब्द से 'नृनरमोर्वृद्धिश्च' वार्तिक से ङीन् (ई) प्रत्यय तथा त्र+कार के स्थान पर वृद्धि 'आर्' होकर 'नारी' रूप सिद्ध होता है। इसी प्रकार 'नर्' शब्द से ङीन् (ई) प्रत्यय करके तथा नकारोत्तरवर्ती अकार के स्थान पर वृद्धि अकार होकर नारी रूप बनता है।

३७. श्वश्रूः

यहाँ श्वशुर शब्द से स्त्रीलिङ्ग में उङ्ग (ऊ) प्रत्यय होकर 'श्वशुर ऊ' रूप बनने पर शकारोत्तरवर्ती उकार तथा रकारोत्तरवर्ती आकार का लोप होकर 'श्वश्रू' बनता है। पुनः विभक्ति कार्य होकर 'श्वश्रूः' रूप सिद्ध होता है।

३८. युवतिः।

यहाँ 'युवन्' शब्द से 'यूनास्ति:' सूत्र से स्त्रीलिंग में 'ति' प्रत्यय करके 'युवन् ति' रूप बनता है। पुनः 'न लोपः प्रातिपदिकान्तस्य' से नकार का लोप एवं विभक्ति कार्य होकर 'युवति:' रूप सिद्ध होता है।

३९. शार्ङ्गखी।

यहाँ 'शार्ङ्गख' शब्द से 'शार्ङ्गखाद्यत्रो ङीन्' (ई) प्रत्यय होकर 'शार्ङ्गख ई रूप बनता है। पुनः 'यस्येति च' से अन्त्य अकार का लोप होकर 'शार्ङ्गखी' रूप सिद्ध होता है।

४०. 'सूरी'

'सूर्यस्य स्त्री' अस्य विग्रहः सूर्यः शब्दाः पुंयोगादारत्याम्' सूत्र ङीष प्रत्ययः। ४९. भौगोलिकः

भूगोल शब्द से भौगोल अर्थ में ठक् प्रत्यय हुआ। प्रत्यय के ठकार के स्थान पर 'इक' आदेश होने पर आदिवृद्धि और अन्त्य ईकार का लोप होने अकारान्त शब्द बना प्रथमा के एकवचन में भौगोलिक रूप सिद्ध हुआ।

४२. त्वदीयः।

यहाँ त्यदादि होने के कारण युष्मद् शब्द को त्यदाऽऽदीनि च से वृद्ध संज्ञा होने पर 'वृद्धात् छ: ' सूत्र से छ प्रत्यय हुआ। तब 'प्रत्ययोत्तरपदयोश्च' सूत्र से मपर्यन्त भाग को त्व आदेश तथा प्रत्यय के छकार को इय् आदेश होकर 'त्वदीय:' रूप सिद्ध हुआ।

प्रकृत सूत्र प्रत्यय उत्तरपद परे रहते त्व आदेश करता है। तो यह 'त्वदीय:' रूप बनता है।

४३. 'एडका' इति शब्दे कः प्रत्ययः?

अथवा
'एडका' पदयोः प्रकृति प्रत्ययों विधेयः।

टाप् (आ) प्रत्यय है। (स्त्री-प्रत्यय के अन्तर्गत)।

४४. 'कुरुचरी' इत्यत्र कः प्रत्ययः?

स्त्रियाय् सूत्र से टित् प्रत्ययात्र 'कुरुचर' की स्त्री संज्ञा 'कुरुचरी' यह रूप बना।

-४५. 'कुमारी' इत्यत्र प्रकृति प्रत्ययौ कौ?

कुमार ङीप् 'तयसि प्रथमे, इस सूत्र से ङीप् प्रत्यय हुआ। यह स्त्री प्रत्यय के अन्तर्गत है।

४६. 'कारक:' इत्यत्र प्रकृति प्रत्ययौ कौ?

कृ- ‘भूवादयो धातवः’ सूत्र से 'कृ' की धातु संज्ञा होकर 'धातो:' के अधिकार में ण्वुल्तृचौ' से कर्ता अर्थ में ण्वुल् प्रत्यय है जो वृदन्त प्रत्यय में है।

४७. 'सूर्या' इति शब्दे कः प्रत्ययः?

चाप् (आ) प्रत्यय है। (स्त्री प्रत्यय के अन्तर्गत)।

४८. मातुली मातुलानी पादयोः को अर्थभेदः?

इसमें आन् और ङीष् (ई) प्रत्यय अर्थ भेद है। स्त्री-प्रत्यय है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- निम्नलिखित क्रियापदों की सूत्र निर्देशपूर्वक सिद्धिकीजिये।
  2. १. भू धातु
  3. २. पा धातु - (पीना) परस्मैपद
  4. ३. गम् (जाना) परस्मैपद
  5. ४. कृ
  6. (ख) सूत्रों की उदाहरण सहित व्याख्या (भ्वादिगणः)
  7. प्रश्न- निम्नलिखित की रूपसिद्धि प्रक्रिया कीजिये।
  8. प्रश्न- निम्नलिखित प्रयोगों की सूत्रानुसार प्रत्यय सिद्ध कीजिए।
  9. प्रश्न- निम्नलिखित नियम निर्देश पूर्वक तद्धित प्रत्यय लिखिए।
  10. प्रश्न- निम्नलिखित का सूत्र निर्देश पूर्वक प्रत्यय लिखिए।
  11. प्रश्न- भिवदेलिमाः सूत्रनिर्देशपूर्वक सिद्ध कीजिए।
  12. प्रश्न- स्तुत्यः सूत्र निर्देशकपूर्वक सिद्ध कीजिये।
  13. प्रश्न- साहदेवः सूत्र निर्देशकपूर्वक सिद्ध कीजिये।
  14. कर्त्ता कारक : प्रथमा विभक्ति - सूत्र व्याख्या एवं सिद्धि
  15. कर्म कारक : द्वितीया विभक्ति
  16. करणः कारकः तृतीया विभक्ति
  17. सम्प्रदान कारकः चतुर्थी विभक्तिः
  18. अपादानकारकः पञ्चमी विभक्ति
  19. सम्बन्धकारकः षष्ठी विभक्ति
  20. अधिकरणकारक : सप्तमी विभक्ति
  21. प्रश्न- समास शब्द का अर्थ एवं इनके भेद बताइए।
  22. प्रश्न- अथ समास और अव्ययीभाव समास की सिद्धि कीजिए।
  23. प्रश्न- द्वितीया विभक्ति (कर्म कारक) पर प्रकाश डालिए।
  24. प्रश्न- द्वन्द्व समास की रूपसिद्धि कीजिए।
  25. प्रश्न- अधिकरण कारक कितने प्रकार का होता है?
  26. प्रश्न- बहुव्रीहि समास की रूपसिद्धि कीजिए।
  27. प्रश्न- "अनेक मन्य पदार्थे" सूत्र की व्याख्या उदाहरण सहित कीजिए।
  28. प्रश्न- तत्पुरुष समास की रूपसिद्धि कीजिए।
  29. प्रश्न- केवल समास किसे कहते हैं?
  30. प्रश्न- अव्ययीभाव समास का परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- तत्पुरुष समास की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
  32. प्रश्न- कर्मधारय समास लक्षण-उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- द्विगु समास किसे कहते हैं?
  34. प्रश्न- अव्ययीभाव समास किसे कहते हैं?
  35. प्रश्न- द्वन्द्व समास किसे कहते हैं?
  36. प्रश्न- समास में समस्त पद किसे कहते हैं?
  37. प्रश्न- प्रथमा निर्दिष्टं समास उपर्सजनम् सूत्र की सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
  38. प्रश्न- तत्पुरुष समास के कितने भेद हैं?
  39. प्रश्न- अव्ययी भाव समास कितने अर्थों में होता है?
  40. प्रश्न- समुच्चय द्वन्द्व' किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- 'अन्वाचय द्वन्द्व' किसे कहते हैं? उदाहरण सहित समझाइये।
  42. प्रश्न- इतरेतर द्वन्द्व किसे कहते हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
  43. प्रश्न- समाहार द्वन्द्व किसे कहते हैं? उदाहरणपूर्वक समझाइये |
  44. प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।
  45. प्रश्न- निम्नलिखित की नियम निर्देश पूर्वक स्त्री प्रत्यय लिखिए।
  46. प्रश्न- भाषा की उत्पत्ति के प्रत्यक्ष मार्ग से क्या अभिप्राय है? सोदाहरण विवेचन कीजिए।
  47. प्रश्न- भाषा की परिभाषा देते हुए उसके व्यापक एवं संकुचित रूपों पर विचार प्रकट कीजिए।
  48. प्रश्न- भाषा-विज्ञान की उपयोगिता एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- भाषा-विज्ञान के क्षेत्र का मूल्यांकन कीजिए।
  50. प्रश्न- भाषाओं के आकृतिमूलक वर्गीकरण का आधार क्या है? इस सिद्धान्त के अनुसार भाषाएँ जिन वर्गों में विभक्त की आती हैं उनकी समीक्षा कीजिए।
  51. प्रश्न- आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ कौन-कौन सी हैं? उनकी प्रमुख विशेषताओं का संक्षेप मेंउल्लेख कीजिए।
  52. प्रश्न- भारतीय आर्य भाषाओं पर एक निबन्ध लिखिए।
  53. प्रश्न- भाषा-विज्ञान की परिभाषा देते हुए उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  54. प्रश्न- भाषा के आकृतिमूलक वर्गीकरण पर प्रकाश डालिए।
  55. प्रश्न- अयोगात्मक भाषाओं का विवेचन कीजिए।
  56. प्रश्न- भाषा को परिभाषित कीजिए।
  57. प्रश्न- भाषा और बोली में अन्तर बताइए।
  58. प्रश्न- मानव जीवन में भाषा के स्थान का निर्धारण कीजिए।
  59. प्रश्न- भाषा-विज्ञान की परिभाषा दीजिए।
  60. प्रश्न- भाषा की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- संस्कृत भाषा के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
  62. प्रश्न- संस्कृत साहित्य के इतिहास के उद्देश्य व इसकी समकालीन प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिये।
  63. प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन की मुख्य दिशाओं और प्रकारों पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन के प्रमुख कारणों का उल्लेख करते हुए किसी एक का ध्वनि नियम को सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
  65. प्रश्न- भाषा परिवर्तन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- वैदिक भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- वैदिक संस्कृत पर टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- संस्कृत भाषा के स्वरूप के लोक व्यवहार पर प्रकाश डालिए।
  69. प्रश्न- ध्वनि परिवर्तन के कारणों का वर्णन कीजिए।

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